10.11.2008

दोहा

बन पाये तो वृक्ष बन, झेल धूप दे छाँव
कितना भी ऊपर उठे, रहे धारा पर पाँव
-नरेश शांडिल्य

10.02.2008

दोहा

इतना ऊँचा मत रखो, सपनों का आकाश
तलवे याद न रख सकें धरती का आभास
-चिराग जैन

9.30.2008

bindaas jeene kaa!

LIFE IS A GAME- PLAY IT